मनस्विनी – शिखा पोरवाल
कालचक्र का
नव संवत्सर बदला
विदेशी धरा पर
अपना परचम फहरा
शिखर से ज़मी तक
आज भी भाल के
कपाल पर भारी
प्रगत विचार,
ठहरें संस्कारों
की सरीता बहा
धरती से व्योम तक
ओम का समन्वित
अनहद नाद बजा
प्रभंजन मलय पवन
का तेज प्रखर उन्माद
ऐसा प्यारा मेरा हिन्दुस्तान
जिसमें रहते हम हिंदवासी..
सुश्रुतसंहिता
व शुन्य के प्रणेता
तक्षशिला जिस पर
आज भी हम गौराविन्त
राम – कृष्ण की जन्मभूमि
संस्कृति जिसकी तपोभूमि
संतो की पावन कर्मभूमि
वेदों के मंत्रो से गुंजित
जिसकी चहूँ सीमाएं
सोने की चिड़िया के
ताज से सुशोभित
भाषा जिसकी हिंदी
बोली में घोलती मिठास
ऐसा मेरा प्यारा हिन्दुस्तान
जिसमें रहते हम हिंदवासी
हमारी बुनियाद पक्की
नहीं कभी किसी
पर किया वार
विजयी विश्व पताका
हर संघर्ष का परिणाम
अविरत बलिदानों का प्रमाण
जिसकी सर्वोपरि मानवता
पुष्प सुख आंनद का खिला
हर त्रृतु का उमंग, उल्लास
से करते आगमन
हर त्योंहार, खानपान
विज्ञान की परिभाषा
से गुंफित
ऐसा मेरा प्यारा हिन्दुस्तान
जिसमें हम रहते हिंदवासी
समभाव व सद्भावना
का जहाँ जयकारा
चाय वाला, पेपर बाँटने वाला
देश की सम्हाले बागडोर
संयम, सेवा , सादगी,
जीवन का योग
भक्ति, शक्ति का
सुरभित कुंज
सद्कर्मों का मूलमंत्र
ज्ञान, कर्म से उज्जवलित
अभिमान से प्रज्ज्वलित
ऐसा मेरा प्याररा हिन्दुस्तान
जिसमें रहते हम हिंदवासी…..
मनस्विनी, अस्मिता लॉरेंस
भगवद गीता का अभ्यास
क्या रहस्य हैं गीता में ख़ास
गहन जीवन दर्शन का विस्तार
18 अध्यायों में धर्म का सार
उपलब्ध सदियों से युगों से हर काल में
मगर हम फँसे हैं माया जाल में
सत्य खोजने की फुर्सत नहीं
समझने की समझ नहीं
जानने का ज्ञान नहीं
संवाद है, श्री कृष्ण
सारथी के बोल
पीड़ा, व्यथा, दुविधा के हल अनमोल
उपदेश हैं हर अर्जुन के लिए स्पष्ट सरल
कठिन है मगर इस पर करना अमल
केवल एक बात का रखकर होश
कि हर इंसान में भगवान है
घर गृहस्ती में भी संतोष
सुख की प्राप्ति है, उत्थान है
कर्म, भक्ति या ज्ञान
के पथ पर, हर योग से
ब्रह्म की है पहचान
निरपेक्षित कर्म की आस्था
धर्म का मार्ग सत्य का साथ
विशाल ब्रह्माण्ड में तुच्छ मानव
और सत्य खोजने की फुर्सत नहीं
समझने की समझ नहीं
जानने का ज्ञान नहीं
अभी हम अनजान हैं
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मनस्विनी, नरिंदर फ़्लोरा
चले आए उस राह पर
जो सनातन ने दिखाई है
थोड़ी कठिन तो है—
पर नामुमकिन नहीं
अनेकता में एकता
और या कहें
“वसुधैव कुटुंबकम “-
—-यह मंत्र—-
सनातन धर्म का मूल संस्कार है
विचार धारा है, यह हमें समझाया
“मैं “-से जब “मैं “विलग हो गया
अपने -पराए का भेद मिट गया
जब सब सीमाएँ ख़त्म हुई —-
“अनन्त “में— “मैं “खो गया
“अनन्त “में “मैं “खो गया!!
हमें जो यह सम्मान दिया गया है
हमें अपनी विचार धारा बदल कर
इस सम्मान का मान रखना होगा
पशु-पक्षी-पेड -पौधे –
यह सब हमारे परिवार का हिस्सा है
इन सब से प्यार करना होगा
इन सब का सम्मान भी करना होगा
—वसुधैव कुटुंबकम —-
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सुरेश कुमार
जाने क्या पापी मेरी ज़िन्दगी ने
हँस कर कहा
आज फिर हिंदु बनने का इरादा है
आज फिर जीने की तमन्ना है।
कल के अँधेरों से निकल के
देखा है आँखें मलते-मलते
आज फिर हिंदु बनने का इरादा है
आज फिर जीने की तमन्ना है।
हिमालय के शिखर से ऊंचा
अथाह सागर से गहरा
सीपी के मोती से अनमोल
है धर्म ऐसा हमारा।
सुविचारों को करें नमन
कुप्रथाओं का करें दमन
आएं इसकी गरिमा बढ़ाएं
विश्व पटल पर ध्वजा फहराएं।
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मनस्विनी, सुचित्रा जोशी
जिसके उद्भव का स्त्रोत है ज्ञान,
योग, साधना, भक्ति और ध्यान,
वेद पाठ, यज्ञ कर्म और दान,
जिस पुरातन धर्म पर है अभिमान
वो मेरा हिन्दू धर्म महान!
जिसका शंख नाद गूंजे धरती अम्बर में
हिन्दू विरासत माह (Hindu Heritage Month)
मना रहे नवंबर में!
सर्वधर्म समभाव सिखाये,
गुरु के चरणों में शीश झुकाये,
सागर, पर्वत, मेघ और सरिता,
सबके प्रति कृतज्ञता,
परोपकार, उदारता और सहिष्णुता,
है जिसकी विशेषता,
मन वचन और कर्म की क्रिया से,
अपनी नियति खुद ही तय करता,
जो करता मानवता का सम्मान
मेरा हिन्दू धर्म महान!
न अहंकार और न
प्रदर्शन,
केवल आध्यात्म और दर्शन,
फिर तेरा तुझ को अर्पण!
गंगा की शुचिता, गायत्री मन्त्र का उच्चार और गीता का ज्ञान,
मेरा हिन्दू धर्म महान!
सर्वे भवन्तु सुखिनः
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मनस्विनी, शालू माखीजा
कैलाश के शिखरों में बसता
गंगा के प्रवेग में बहता
ओमकार की ध्वनि में रहता
सत्य सनातन ये समझाता
धर्म हमारा ‘करुणा’ कहलाता ।
चिता की राख से खूब संवरता
योगी की विरक्ति में सजता
वैदिक ज्ञान से मार्ग दिखाता
प्राणायाम से संगीत बनाता
धर्म हमारा ‘योगा’ कहलाता ।
पिता के कर्मठ हाथो में पलता
माँ की आस्था में यूं निखरता,
मदद को उठे हर उस हाथ में
आती जाती हर एक साँस में
धर्म मेरा ‘मानवता’ सिखाता ।
रीति रिवाजों से ऊँचा ये
अर्थ अनुवादों से परे ये
अहंकार पे मंद मुस्काए
कर्म योग के पथ पे चलता
भक्ति और भिक्षा में बसता
धर्म हमारा ‘सांख्य योग’ समझाता ।
जो आया है, उसे जाना है
जो आज तुम्हारा है,
वो कल किसी ओर का होना है
पहचानो उस ऊर्जा को खुद में,
जो हरदम अविरत बहती है
जान जो लोगे तुम उस
परम स्वरूप को,
तुम भी ‘ईश्वर’ बन जाओगे ।
पुकारो माँ को किसी भी नाम से,
क्या रूप उसका बदलता है
रचयिता ने रचना की है,
ईश्वर तो हर कण में बसता है।
सत्य सनातन ये समझाता,
धर्म हमारा ‘निर्वाणा’ कहलाता ।।
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